Friday, May 28, 2021

इतिहास के झरोखे से:- भारत की दासता part 2

 1 जनवरी 1877 को दिल्‍ली दरबार में क्वीन विक्टोरिया बनी थीं ब्रिटिश भारत की महारानी -


ब्रिटिश साम्राज्‍य का हिस्‍सा बनने से पहले भारत पर ईस्‍ट इंडिया कंपनी का शासन था। लेकिन 1857 के सिपाही विद्रोह या गदर के बाद तत्‍कालीन ब्रिटिश सरकार ने फैसला लिया कि भारत को अब ब्रिटिश साम्राज्‍य का हिस्‍सा बना लेना चाहिए। इसी क्रम में आज से लगभग 142 साल पहले 1 जनवरी 1877 को ऐलान किया गया कि भारत क्‍वीन विक्‍टोरिया के शासन तले आ गया है और क्‍वीन विक्‍टोरिया ही अब भारत की भी महारानी या राष्‍ट्राध्‍यक्ष हैं।


1877 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बेंजामिन डिजरायली थे। वह कंजर्वेटिव पार्टी के थे। यों तो 1858 के बाद से ही भारत पर सीधे तौर पर ब्रिटिश राजशाही का नियंत्रण था लेकिन यह सोचा गया कि इसकी औपचारिक घोषणा की जाए ताकि भारत और ब्रिटेन के संबंध और मजबूत हो सकें।


इसके लिए ब्रिटिश संसद में 1876 में रॉयल टाइटल्‍स बिल लाया गया जिसका उदारवादियों ने विरोध किया। क्‍वीन विक्‍टोरिया ने अपने पति प्रिंस एल्‍बर्ट की मृत्‍यु के बाद पहली बार स्‍वयं पार्लियामेंट का शुभारंभ किया।


भारत पर ब्रिटेन की राजसत्‍ता का ऐलान करने के लिए 1 जनवरी 1877 का दिन चुना गया साथ ही यह भी तय किया गया कि दिल्‍ली के कॉरोनेशन पार्क में एक आयोजन कर इसकी घोषणा की जाए। इसे दिल्‍ली दरबार का नाम दिया गया।


महारानी की प्रजा होने के नाते भारत सैद्धांतिक रूप से ही सही तमाम मानवतावादी नीतियों का हकदार बन गया। सैद्धांतिक रूप से ही सही लेकिन इन नीतियों को लागू करवाने की शुरुआत से भारतीय राष्‍ट्रवादी आंदोलन का श्रीगणेश हुआ जिसने धीरे-धीरे स्‍वतंत्रता आंदोलन का रूप ले लिया। कुल मिलाकर दिल्‍ली दरबार ने भारतीयों और महारानी के बीच से ईस्‍ट इंडिया कंपनी को हटाकर दोनों को आमने- सामने कर दिया।

 

                                    जय हिंद

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